Thursday, August 21, 2008

कर्मपाल गिल

कर्मपाल गिल
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लगता है 'हमारे` कामरेडों को भारत की कोई सफलता पच नहीं पाती है। किसी भी क्षेत्र मंे भारत की उपलब्धि की चर्चा हो वह एकदम चीन से उसकी तुलना कर उसे खारिज करने की कोशिश करते हैं। पर वह यह नहीं कहते कि जिस तरह के विघ्नसंतोषी काम वामपंथी दल भारत में करते हैं आए हैं ऐसा चीन में करते तो उन्हें किसी निर्जन टापू में पहुंचा दिया जाता। खैर चीन के कम्यूनिस्ट अपने खिलाड़ियों की कद्र करना जानते हैं। लेकिन भारत के कम्यूनिस्ट अपने खिलाड़ियों की बेज्जइती करना। यह अलग बात है कि इससे खिलाड़ियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। अभिनव की जीत पर किसी कामरेड की तरफ से कोई बधाई देना तो दूर की बात, पश्चिम बंगाल के खेल मंत्री सुभाष चक्रवर्ती ने अभिनव की जीत को तु का करार दे डाला। अभिनव बिंद्रा को पूरा देश दुनिया जान रही है। लेकिन उन पर टिप्पणी करने वाले पश्चिम बंगाल के खेलमंत्री सुभाष चक्रवर्ती की अपनी खुद पहचान या है। कुछ उन्हीं की तरह कामरेडो के अलावा उन्हें कौन जानता है? या योगदान है उनका समाज के लिए ? या वह खुद तु के के मंत्री नहीं बने हैं। या वह किसी मुद्दे पर सौ लोगों को इकट्ठा करने की हिम्मत रखते हैं। सुभाष चक्रवर्ती जैसे कई घूमते हैं लेकिन अभिनव बिंद्रा तो एक ही होता है। दुर्भाग्य यही है कि सुभाष चक्रवर्ती जैसे लोग तिकड़मों से खेल के मंत्री बने हुए हैं। उनकी बात का कोई बुरा नहीं मान रहा । लोगों ने बस यही समझा कि कोई सठिया गया है जो गोल्ड लाने वाले अभिनव के लिए ऐसी बात कह रहा है। सठियाए हुए तो ये शुरु से हैं। कभी सुभाष चंद्र बोस को अपशब्द कहते थे। कभी पूरा देश अंग्रजों भारत छोड़ो के नारे लगा रहा था ये नारे का विरोध कर रहे थे। चीन के युद्ध में उसकी तरफदारी कर रहे थे। इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल को इन्होंने उचित ठहराया था। यानी हर काम जो भारत की अस्मिता के खिलाफ हो वहां ये ताल ठोककर उसका समर्थन करते हैं। इन्हें इस बात की परवाह नहीं कि पाकिस्तान और चीन ने कश्मीर की कितनी जमीन हथिया ली। पर थोड़ी सी जगह कुछ महीनों के लिए श्राइन बोर्ड वाले मांग रहे हैं तो वामपंथी सुलग रहे हैं। अपनी हास्यास्पद दलील दे रहे हैं। अपना गढ़ा इतिहास सबको बता रहे हैं। अमेरिका के साथ परमाणु करार पर वह सरकार को गिराने का असफल प्रयास कर चुकी है। अब बीजिंग में अभिनव बिंद्रा द्वारा व्यि तगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतना कामरेडों को हजम नहीं हो रहा। अभिनव के पदक जीतने के बाद पूरे देश में जश्न मनाया। पटाखे छाे़डे गए। मिठाइयां बांटी गइंर्। राष्ट ्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर सभी बड़े नेताआें और बड़े खिलाड़ियों ने अभिनव और उसके मां-बाप को बधाइयां दी। लेकिन कामरेड मायूसी में डूब गए। उन्हें इस बात का दुख हुआ कि अभिनव ने चीनी खिलाड़ी को हराकर गोल्ड पर कब्जा जमाया। चीन के खिलाड़ी को हारता देख वह शोक में डूब गए। एक राज्य के मंत्री और वो भी खेली मंत्री के मुंह से ऐसी भाषा शोभा नहीं देती। उनके इस बयान से देश के कराे़डों खिलाड़ियों और खेलप्रेमियों को आघात लगा। अभिनव कोई नया-नवेला खिलाड़ी है। ओलंपिक के अलावा कई अन्य अंतरराष्ट ्रीय प्रतिस्पर्धाआें में वह अपने प्रदर्शन का लोहा मनवा चुका है। वर्ष २००० के सिडनी ओलंपिक में उसने भारत के सबसे युवा प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। २००१ में कई अंतरराष्ट ्रीय स्पर्धाआें में ६ स्वर्ण पदक जीते। २००२ के कामनवेल्थ गेम्स में दस मीटर एअर राइफल सिंगल का रजत पदक जीता। २००६ के कामनवेल्थ गेम्स में ५० मीटर राइफल थ्री व्यि तगत स्पर्धा में रजत पदक जीता। इसके अलावा भी कई अन्य उपलब्धियां उसके खाते में हैं। भारत सरकार उन्हें २००१ में अर्जुन अवार्ड और २००१-०२ में राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड से सम्मानित कर चुकी है। इतने होनहार खिलाड़ी की जीत को कामरेड चक्रवर्ती तु का बता रहे हैं। उन्हें शर्म आनी चाहिए। यह बयान देकर जो कृत्य उन्होंने किया है, ऐसा कोई देशद्रोही ही कर सकता है। ऐसा बयान देने से पहले दस बार सोचना चाहिए था। लगता है पदक वितरण के समय जब देश की राष्ट ्र धुन बजी और भारत का तिरंगा झंडा चीन के झंडे से ऊपर उठा, इसे वह देख नहीं सके।

Friday, August 8, 2008

मन को आया सुकून, जो सुना बड़े गुलाम अली को

वेद विलास उनियाल

आज सुबह विविध भारती पर बड़े गुलाम अली का एक भजन मन को बेहद सुकून दे गया। इस मायने में भी कि पिछले दिनों संसद में गुरु घंटालों की कारगुजारियों को देख मन व्यथित था। अभी ज्यादा व त नहीं हुआ हमारे सैनिक कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर चढ़ते हुए विपरीत स्थिति में आतंकवादियों से जूझ रहे थे। सैनिकों के शहीद होने की खबरें आती थी। पूरा देश गमगीन था और साथ ही अपने जवानों की शौर्य गाथा से अभिभूत भी। तब भी मन में यही कसक हुई थी। एक तरफ हमारे जवान सियाचीन करगिल जैसी ऊंची पहाड़ियों पर तैनात होकर देश की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं, दूसरी तरफ हमारे नेता किस तरह इस देश की अस्मिता पर प्रहार कर रहे हैं। बेशक उनकेपास टीवी के माइक पर बोलने के लिए ऊंची आवाज है, उनके पास चमकता कुर्ता है, विरोधियों को चित्त करने के लिए फुहड़ डिबेट है। लेकिन, अगर उन्हें कुछ याद नहीं रहता तो शायद यही कि हर बार सीमा से हमारे कुछ सैनिक अधिकारियों के शहीद हो जाने की खबर रह-रह कर आती है।
संसद में नोट उछालने का वह दृश्य दिखा तो बहुत याद करने पर भी याद नहीं आया कि किसी मारधाड़ या स्टंट फिल्म के किसी सीन में इतने रुपए एक साथ देखे होंगे। नहीं याद आया। भारतीय मध्यम वर्ग का आम आदमी इतने रुपए तो फिल्म के पर्दे पर ही देखता है। यहां के जासूसी उपन्यासों में भी पैसों की बात होती है तो लेखक दस पांच लाख रुपए तक ही बात सीमित रखते हैं। तब करोड़ रुपए संसद के पटल पर रखे जा रहे थे। इस बात की उत्सुकता नहीं कि रुपए कहां से आए और किसने दिए। राजनीति के पतन में अब सब कुछ किसी भी स्तर तक हो सकता है। एक करोड़ नहीं प्रत्येक दलबदलू को पचास करोड़ भी चाहिए तो कुछ नेता कहे जाने वाले बिचौलिए उसका भी इंतजाम कर लेंगे।
बात फिर एक क्षण की। विविध भारती सुनने के लिए रेडियो स्विच ऑन किया तो ठुमरी पर कार्यक्रम चल रहा था। ठुमरी और वह भी बड़े गुलाम अली की। शायद सावन के महीने में विविध भारती ने समझ कर बड़े गुलाम अली की ठुमरी हरी ओम तत्सत को सुनाया होगा। इस भजन से अपनी पुरानी स्मृति जु़डी है। बचपन की याद है पिताजी ने कभी कहा था हरि ओम तत्सत, महामंत्र है, ये जपा कर, जपा कर, बड़े गुलाम अली ने बहुत भावविभोर होकर गाया है, कभी जरूर सुनना। फिर बाद में कहीं और भी जिक्र हुआ था। पर इस भजन को कहीं सुन नहीं पाया था। इसकी चाह में जगह जगह घूमा। मुंबई के रिदम हाउस, दिल्ली के बाजारों, दून का पल्टन बाजार, और भी बहुत जगह। बड़े गुलाम अली की कई कैसेट सीडी देखीं पर यह भजन नहीं दिखा। फिर एकाएक रेडियो पर उद्घोषिका ने बड़े गुलाम अली की ठुमरी का जिक्र करते हुए इस भजन का जिक्र किया तो मन चहक उठा। बरसों मन की चाह पूरी हो रही है। कुछ ही पलों में बड़े गुलाम अली की सधी आवाज गूंज रही थी। मैं सुन रहा था,
...एक दिन पूछने लगी शिव से शैलजा कुमारी, प्रभु कहो कौन सा मंत्र है कल्याणकारी, कहा शिव ने यही मंत्र है तू जपा कर जपा कर हरी ओम तत्सत, हरी ओम तत्सत। लगी आग लंका में हलचल मची थी, तो यों कर विभिषण की कुटिया बची थी, यही मंत्र उसके मकां पर लिखा था हरी ओम तत्सत, हरी ओम तत्सत। उस साधक के स्वरों में मैं खो सा गया। जहां अमृत का रस बरसता हो वहां हमारी नई पीढ़ी इससे अनजान यों है। मुझे थोड़ा तंज भी हुआ कि मुंबई में रहते मैंने विविध भारती में कमल शर्मा और यूनुस खान से इस भजन की चर्चा यों नहीं की। और तमाम गीत संगीत पर तो साथियों से जब-तब बातें होती रहती थी। वह मुझे कुछ न कुछ बताते। लेकिन, अब ही सही, मुझे वह सुनने को मिला जिसे पाने के लिए मैंं बहुत घूमा फिरा। वह स्वर मेरे कानों मेंं अब भी गूंज रहे हैं। सच कितनी संपन्न विरासत है हमारी। आप को भी यह सुनने को मिले तो जरूर सुनिएगा।