गुरु पूर्णिमा के अवसर पर १५ जुलाई को राधा स्वामी सत्संग आश्रम भिवानी में परम संत हुजूर कंवर सिंह जी महाराज से आशीर्वाद लेते कर्मपाल गिल और उनकी धर्मपत्नी यशवंती देवी। महाराज जी के साथ बैठे हैं उनके गुरुमुख शिष्य भाई हरिकेश जी।Wednesday, July 20, 2011
सतगुरु जी महाराज से लिया आशीर्वाद
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर १५ जुलाई को राधा स्वामी सत्संग आश्रम भिवानी में परम संत हुजूर कंवर सिंह जी महाराज से आशीर्वाद लेते कर्मपाल गिल और उनकी धर्मपत्नी यशवंती देवी। महाराज जी के साथ बैठे हैं उनके गुरुमुख शिष्य भाई हरिकेश जी।Thursday, January 20, 2011
Tuesday, August 3, 2010
Saturday, June 26, 2010
पिता हैं तो ...
पिता सृष्टि में निर्माण की अभिव्यक्ति है
पिता अंगुली पकड़े बच्चे का सहारा है
पिता कभी कुछ खट्टा - कभी खारा है
पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है
पिता धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है
पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है
पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है
पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है
पिता है तो बच्चों को इंतजार है
पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं
पिता हैं तो बाज़ार के सब खिलोने अपने हैं
पिता से परिवार में प्रतिपल राग है
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है
पिता एक जीवन को जीवन का दान है
पिता दुनिया दिखाने का एहसान है
पिता सुरक्षा है, अगर सर पर हाथ है
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है
तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो
पिता का अपमान नहीं, उन पर अभिमान करो
क्योंकि माँ-बाप की कमी को कोई बाँट नहीं सकता
और ईश्वर भी उनके आशिसों को काट नहीं सकता
विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है
माँ-बाप की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है
विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्रा व्यर्थ है
यदि बेटे के होते माँ-बाप असमर्थ हैं
वो खुशनसीब हैं माँ-बाप जिनके साथ होते हैं
क्योंकि माँ-बाप के आशिसों के हजारों हाथ होते हैं
क्योंकि माँ-बाप के आशिसों के हजारों हाथ होते हैं
- ओउम व्यास
Monday, February 1, 2010
पापा और बिटिया
कोमल कली सी बेटी , पापा के आगंन मे चहकी ।बनके सबकी लाडली , पुरे घर उपवन मे महकी ।
लाडों से पली, सबकी दुलारी बिटिया स्कूल चली ।देख कर उस चिडिया को, मन अति आनंदित होता था ।
छोटी सी बेटी, उसके छोटे छोटे हाथ, पापा को दुलराते ।जैसे कोइ मां अपने बेटे को दुलराती है ।
पापा उसकी छॊटी सी गोद मे सर रख कर खो जाते ।ऐसा सुखद एहसास सिर्फ़ मा की गोद मे ही होता है ।
पापा बेटी साथ साथ, सुबह घर से स्कूल के लिये जाते ।दोपहर मे पापा बेटी को स्कूल से लेकर घर आते ।
फ़िर दोनों साथ साथ, खाना खा कर थोडी देर सो जाते ।कभी बेटी मां बनकर पापा को सुलाती, कभी पापा उसे सुलाते ।
फ़िर उठकर पापा आफ़ीस जाते, बिटीया फ़िर दादी बूआ मां ।इन सबका प्यार लेती और मानों उनपर एहसान करती ।
शाम को पापा के लोटते ही उन पर लद लेती ।बहुत मस्ती करती पापा से , और कुश्ती तक लड लेती ।
जीत तो बिटिया कि तय थी , क्योंकी ये तो पापा बेटी मे ।तय शुदा नूरा कुश्ती होती थी । जीत के बाद बेटी ताली बजाती ।
कभी बेटी मेहरबान होती , तो पापा को भी झूंठ मूंठ मे ।बोलती ॥ पापा अबकी बार तुम जीतना , मैं हारूंगी ।
ऐसा कभी हुवा है , कभी अपनी बहादुर बेटी से कोई पापा जीता है ।पापा फ़िर जान बूझकर हार जाते, बेटी कहती क्या पापा ? फिर हार गये ।
(ताऊ रामपुरिया के ब्लॉग ताऊ डोट इन से साभार)



